Top Stories

पृथ्वी के इस भूभाग में मनुष्य की चेतना की पहली किरण के साथ उस सपने को देखना शुरू किया था।  उस सपने की माला में कितने फूल पिरोये हैं – कितने गौतम बुद्ध, कितने महावीर, कितने कबीर, कितने नानक उस सपने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर गए।  उस सपने को मैं अपना कैसे कहूं?  वह सपना मनुष्य का, मनुष्य की अंतरात्मा का सपना है।  उस सपने को हमने एक नाम दे रखा था। हम उस सपने को भारत कहते हैं।

भारत कोई भूखंड नहीं है।  न ही कोई राजनैतिक इकाई है, न ऐतीहासिक तथ्यों का कोई टुकड़ा है।  न धन, न पद, न प्रतिष्ठा की पागल दौड़ है।  भारत है एक अभीप्सा, एक प्यास–सत्य को पा लेने की। उस सत्य को जो हमारी धड़कन -धड़कन में बसा है।  उस सत्य को जो हमारी चेतना की तहों में सोया है। वह जो हमारा होकर भी हमसे भूल गया है।  उसका पुनर्स्मरण, उसकी पुनरूउद्घोषणा भारत है।

अमृतस्य पुत्रः!  हे अमृत के पुत्रों।  जिन्होंने इस उदघोषणा को सुना वे ही केवल भारत के नागरिक हैं।  भारत में पैदा होने से कोई भारत का नागरिक नहीं हो सकता।  जमीन पर कोई कहीं भी पैदा हो, किसी देश में,किसी सदी में, अतीत में या भविष्य में, अगर उसकी खोज अन्तस् की खोज है, वह भारत का निवासी है।  मेरे लिए भारत और अध्यात्म पर्यायवाची हैं।  इसलिए भारत के पुत्र जमीन के कोने कोने में हैं और जो एक दुर्घटना की तरह केवल भारत में पैदा हो गए हैं, जब तक उन्हें अमृत की तलाश पागल न बना दे, तब तक वे भारत के नागरिक होने के अधिकारी नहीं हैं।

भारत एक सनातन यात्रा है, एक अमृत पथ है, जो अनंत से अनंत तक फैला हुआ है।  इसलिए हमने कभी भारत का इतिहास नहीं लिखा। इतिहास भी कोई लिखने की बात है।  साधारण सी दो कौड़ी की रोजमर्रा की घटनाओं का नाम इतिहास है।  जो आज तूफान की तरह उठती हैं और कल जिनका कोई निशान भी नहीं रह जाता।  इतिहास तो धूल का बवंडर है। भारत ने इतिहास नहीं लिखा। भारत ने तो केवल उस चिरंतन की ही साधना की है, वैसे ही जैसे चकोर चाँद को एकटक बिना पलक झपके देखता रहता है।

मै भी उस अनंत यात्रा का छोटा-मोटा यात्री हूँ।  चाहता था कि जो भूल गए हैं, उन्हें याद दिला दूँ, जो सो गए हैं उन्हें जगा दूं और भारत अपनी आंतरिक गरिमा और गौरव को, अपनी हिमाच्छादित ऊँचाइयों को पुनः पा ले क्योंकि भारत के भाग्य के साथ पूरी मनुष्यता का भाग्य जुड़ा हुआ है।  यह केवल किसी एक देश की बात नहीं है।  अगर भारत अँधेरे में खो जाता है तो आदमी का कोई भविष्य नही है और अगर हम भारत को पुनः उसके पंख दे देते हैं, पुनः उसका आकाश दे देते हैं, पुनः उसकी आंखों को सितारों की तरफ उड़ने की चाह से भर देते हैं तो हम केवल उनको ही नही बचा लेते हैं जिनके भीतर प्यास है, हम उनको भी बचा लेते हैं, जो आज सोये हैं, लेकिन कल जागेंगे; जो आज खोये हैं लेकिन घर लौटेंगे।

भारत का भाग्य मनुष्य की नियति है क्योंकि हमने जैसा मनुष्य की चेतना को चमकाया था और हमने जैसे दीये उसके भीतर जलाये थे, जैसी सुगंध हमने उसमें उपजाई थी, वैसी दुनिया में कोई भी नहीं कर सका था। यह कोई दस हजार साल पुरानी सतत साधना है, सतत योग है, सतत ध्यान है।  हमने इसके लिए और सब कुछ खो दिया, सब कुछ कुर्बान कर दिया लेकिन मनुष्य की अँधेरी से अँधेरी रात में भी हमने आदमी की चेतना के दीये को जलाये रखा है, चाहे कितनी भी मद्धिम उसकी लौ हो गयी हो, लेकिन दिया अब भी जलता है।

 

ओशो

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *