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यात्रा, यात्रा होती है, चाहे वह आंतरिक हो या बाहरी. पर कुछ यात्राएं ऐसी होती है जो जितनी बाहरी होती है उससे कही ज्यादा आंतरिक होती है. इन यात्राओं में शरीर जितना बाहर घूमता है उतनी है मन मानस में विचरण करता हैऔर एक ऐसे स्थान पर पहुंच जाता है जहां आंतरिक और बाह्य अस्तित्व का बोध मिट जाता है और स्वंय से परिचय होता है. काशी वही शहर है जो आपको इस यात्रा पर ले जाने का सामर्थ्य रखता है. और जब यह यात्रा एक प्रवासीकी हो तो यात्रा का हर कदम बड़ी शिद्दत के साथ बढ़ता है. और जब वह प्रवासी मॉरीशस द्वीप से आया हो जहां भारत से दो सौ वर्ष पूर्व गए पूर्वजों के रामायण गान की गूंज आज भी साफ सुनाई देती है तो यह यात्रा तीर्थ यात्रा मेंपरिवर्तित हो जाती है.

दो सौ चौरासी घाट और उनमें से विशेषत: वरुणा और अस्सी घाट के बीच बसा यह शहर वारणासी. इस शहर में न केवल गंगा बहती है पर भारतीय संस्कृति की गंगा का उद्गम भी इसी शहर काशी से होता है. यह वही शहर हैं जहांमणिकर्णिका घाट पर स्वंय महादेव तारक मंत्र देते हैं.

इस बार प्रवासी दिवस की तारीख को आगे सरकाकर कुंभ और गंणतंत्र दिवस के साथ जोड़ना साहसिक और सरहानीय कदम रहा. यह कदम यह दर्शाता है कि प्रवासियों के बारें में उनकी मातृभूमी में सोचा जाता है. उनकी यात्रा कोसफल एवं सार्थक बनाने के लिए कदम उठाए जाते हैं. प्रवासी दिवस में आने का यह मेरा पहला मौका था. और तीन दिन इसमें शामिल होने के बाद मैंने यह निर्णय लिया कि यदि स्थितियों ने साथ दिया तो हर प्रवासी सम्मेलन मेंशामिल होने की इच्छा है.

मॉरीशस के माननीय प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगनाथ मुख्य अतिथि होना भी इस प्रवासी दिवस कार्यक्रम को विशेष बना गया. उनका भाषण मंच पर हुए सभी भाषणों में विशेष और दिल को छू लेने वाला था. वे मंच पर प्रधानमंत्री से अधिक एक प्रवासी भारतीय नजर आए.उन्होने कहा “यदि भारत अतुल्य है तो भारतीयता सर्वव्यापक है. भारत से किसी भी प्रकार से जुड़े होना आपको विशेष बना देता है. “

प्रवासी भारतीय कार्यक्रम का आयोजन बनारस में करना हम जैसे मॉरीशन प्रवासियों के लिए काफी विशेष अनुभव रहा. यह शहर उस मानस की जन्मस्थली है जो भारतीय मूल के मॉरीशनों को पिछले २०० वर्षों से संबल प्रदान कररही है. संचार साधनों के अभाव में वह मानस ही थी जिसने मॉरीशस में न कवल धर्म की पताका फहराए रखी बल्कि भारत से जुड़े होने का भाव जीवित रखा. मॉरीशस में आज भी भारत को देस संबोधन का प्रयोग होता है.

और बनारस उसी मानस की जन्मस्थली है इसलिए प्रवासी दिवस में आए हर मॉरीशन के लिए यह स्थान पूजनीय है. सुबह शाम काशी को गुंजयमान करते मानस के दोहों ने हमें इस शहर के और करीब ला दिया हैं. साथ ही काशीशिव की नगरी भी है और हम मॉरीशस वासियों का शिव से वैसे ही विशेष लगाव है, क्योंकि शिवरात्री हमारा सबसे बडा पर्व है और रामायण हमारा सबसे बडा धर्मग्रंथ. शिवरात्री मॉरीशस में होली-दिवाली से भी बडा त्योहार है.

हमाने मॉरीशस में आचार्यों से सुना है कि काशी को शिव कभी नहीं छोडते और इस बात का अर्थ मुझे काशी की गलियों और विशेषत मणिकर्णिका घाट पर आत्मसाथ हुआ जहा “राम नाम सत्य है” के स्वर गुंजते रहते हैं. इस शहर मेंएक व्यक्ति दूसरे को भोले और महादेव के नाम से संबोधन-अभिवादन करता है. यह शिव की ही नगरी हो सकती है क्योंकि यहां मृत्यु का भी उत्सव

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